Monday, July 11, 2011

मेरा प्रिय पति

लेखिका : नेहा वर्मा

मेरी शादी हुए करीब दस साल हो गये थे। इन दस सालों में मैं अपने पति से ही तन का सुख प्राप्त करती थी। उन्हें अब डायबिटीज हो गई थी और काफ़ी बढ़ भी गई थी। इसी कारण से उन्हें एक बार हृदयघात भी हो चुका था। अब तो उनकी यह हालत हो गई थी कि उनके लण्ड की कसावट भी ढीली होने लगी थी। लण्ड का कड़कपन भी नहीं रहा था। उनका शिश्न में बहुत शिथिलता आ गई थी। वैसे भी जब वो मुझे चोदने की कोशिश करते थे तो उनकी सांस फ़ूल जाती थी, और धड़कन बढ़ जाती थी। अब धीरे धीरे रणवीर से मेरा शारीरिक सम्बन्ध भी समाप्त होने लगा था। पर अभी मैं तो अपनी भरपूर जवानी पर थी, 35 साल की हो रही थी।

जब से मुझे यह महसूस होने लगा कि मेरे पति मुझे चोदने के लायक नहीं रहे तो मुझ पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव होने लगा। मेरी चुदाई की इच्छा बढ़ने लगी थी। रातों को मैं वासना से तड़पने लगी थी। रणवीर को यह पता था पर मजबूर था। मैं उनका लण्ड पकड़ कर खूब हिलाती थी और ढीले लण्ड पर मुठ भी मारती थी, पर उससे तो उनका वीर्य स्खलित हो जाया करता था पर मैं तो प्यासी रह जाती थी।

मैं मन ही मन में बहुत उदास हो जाती थी। मुझे तो एक मजबूत, कठोर लौड़ा चाहिये था ! जो मेरी चूत को जम के चोद सके। अब मेरा मन मेरे बस में नहीं था और मेरी निगाहें रणवीर के दोस्तों पर उठने लगी थी। एक दोस्त तो रणवीर का खास था, वो अक्सर शाम को आ जाया करता था।

मेरा पहला निशाना वही बना। उसके साथ अब मैं चुदाई की कल्पना करने लगी थी। मेरा दिल उससे चुदाने के लिये तड़प जाता था। मैं उसके सम्मुख वही सब घिसी-पिटी तरकीबें आजमाने लगी। मैं उसके सामने जाती तो अपने स्तनो को झुका कर उसे दर्शाती थी। उसे बार बार देख कर मतलबी निगाहों से उसे उकसाती थी। यही तरकीबें अब भी करगार साबित हो रही थी। मुझे मालूम हो चुका था था कि वो मेरी गिरफ़्त में आ चुका है, बस उसकी शरम तोड़ने की जरूरत थी। मेरी ये हरकतें रणवीर से नहीं छुप सकी। उसने भांप लिया था कि मुझे लण्ड की आवश्यकता है।

अपनी मजबूरी पर वो उदास सा हो जाता था। पर उसने मेरे बारे में सोच कर शायद कुछ निर्णय ले लिया था। वो सोच में पड़ गया …

“कोमल, तुम्हें भोपाल जाना था ना… कैसे जाओगी ?”

“अरे, वो है ना तुम्हारा दोस्त, राजा, उसके साथ चली जाऊंगी !”

“तुम्हें पसन्द है ना वो…” उसने मेरी ओर सूनी आंखो से देखा।

मेरी आंखे डर के मारे फ़टी रह गई। पर रणवीर के आंखो में प्यार था।

“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है … बस मुझे उस पर विश्वास है।”

“मुझे माफ़ कर देना, कोमल… मैं तुम्हें सन्तुष्ट नहीं कर पाता हूं, बुरा ना मानो तो एक बात कहूं?”

“जी… ऐसी कोई बात नहीं है … यह तो मेरी किस्मत की बात है…”

“मैं जानता हूं, राजा तुम्हें अच्छा लगता है, उसकी आंखें भी मैंने पहचान ली है…”

“तो क्या ?…” मेरा दिल धड़क उठा ।

“तुम भोपाल में दो तीन दिन उसके साथ किसी होटल में रुक जाना … तुम्हें मैं और नहीं बांधना चाहता हूं, मैं अपनी कमजोरी जानता हूँ।”

“जानू … ये क्या कह रहे हो ? मैं जिन्दगी भर ऐसे ही रह लूंगी।” मैंने रणवीर को अपने गले लगा लिया, उसे बहुत चूमा… उसने मेरी हालत पहचान ली थी। उसका कहना था कि मेरी जानकारी में तुम सब कुछ करो ताकि समय आने पर वो मुझे किसी भी परेशानी से निकाल सके। राजा को भोपाल जाने के लिये मैंने राजी कर लिया।

पर रणवीर की हालत पर मेरा दिल रोने लगा था। शाम की डीलक्स बस में हम दोनों को रणवीर छोड़ने आया था। राजा को देखते ही मैं सब कुछ भूल गई थी। बस आने वाले पलों का इन्तज़ार कर रही थी। मैं बहुत खुश थी कि उसने मुझे चुदाने की छूट दे दी थी। बस अब राजा को रास्ते में पटाना था। पांच बजे बस रवाना हो गई। रणवीर सूनी आंखों से मुझे देखता रहा। एक बार तो मुझे फिर से रूलाई आ गई… उसका दिल कितना बड़ा था … उसे मेरा कितना ख्याल था… पर मैंने अपनी भावनाओं पर जल्दी ही काबू पा लिया था।

हमारा हंसी मजाक सफ़र में जल्दी ही शुरू हो गया था। रास्ते में मैंने कई बार उसका हाथ दबाया था, पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। पर कब तक वो अपने आप को रोक पाता… आखिर उसने मेरा हाथ भी दबा ही दिया। मैं खुश हो गई…

रास्ता खुल रहा था। मैंने टाईट सलवार कुर्ता पहन रखा था। अन्दर पैंटी नहीं पहनी थी, ब्रा भी नहीं पहनी थी। यह मेरा पहले से ही सोचा हुआ कार्यक्रम था । वो मेरे हाथों को दबाने लगा। उसका लण्ड भी पैंट में उभर कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था। उसके लण्ड के कड़कपन को देख कर मैं बहुत खुश हो रही थी कि अब इसे लण्ड से मस्ती से चुदाई करूंगी। मैं किसी भी हालत में राजा को नहीं छोड़ने वाली थी।

“कोमल … क्या मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं…?”

“हूं … अच्छे लोग अच्छे ही लगते हैं…” मैंने जान कर अपना चहरा उसके चेहरे के पास कर लिया। राजा की तेज निगाहें दूसरे लोगों को परख रही थी, कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है। उसने धीरे से मेरे गाल को चूम लिया। मैं मुस्करा उठी … मैंने अपना एक हाथ उसकी जांघो पर रख दिया और हौले हौले से दबाने लगी। मुझे जल्दी शुरूआत करनी थी, ताकि उसे मैं भोपाल से पहले अपनी अदाओं से घायल कर सकूं।

यही हुआ भी …… सीटे ऊंची थी अतः वो भी मेरे गले में हाथ डाल कर अपना हाथ मेरी चूचियों तक पहुँचाने की कोशिश करने लगा। पर हाय राम ! बस एक बार उसने कठोर चूचियों को दबाया और जल्दी से हाथ हटा लिया। मैं तड़प कर रह गई। बदले में मैंने भी उसका उभरा लण्ड दबा दिया और सीधे हो कर बैठ गई। पर मेरा दिल खुशी से बल्लियों उछल रहा था। राजा मेरे कब्जे में आ चुका था। अंधेरा बढ़ चुका था…

पूरी कहानी यहाँ है !

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